Sunday 1 January 2012

चेहरा




आता है नजर 
वक़्त की धुंध में  एक धुंधला सा चेहरा 
   

बना लेता हूँ   उसके   नयन नक्श फिर
धीरे से उभर आता है तेरा अक्श फिर


हर  रोज यूँ में ख्यालों  में  बनाकर तुम्हे   
बस बैठा लेता हूँ  सामने  सजाकर तुम्हे

रोज की भांति  गिले-शिकवों का  एक दौर
चला हमारे दरमियाँ  इस और  से  उस ओर

 
अंत में हम अनन्त मनुहार के उत्कर्ष पे
जा मिले फिर यूँ प्यार के चरमोत्कर्ष पे

जाता है निखर
यूँ  प्यार के द्वंद  में  दूध सा धुला  चेहरा 

"विक्रम"
    

13 comments:

  1. नव वर्ष मंगलमय हो ..
    बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें

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  2. सुरन्द्र जी , आपको भी नववर्ष के मंगल कामनाएं

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  3. सुंदर भावमयी प्रस्तुती....
    नववर्ष आपके जीवन में अपार खुशिया लेकर आये....
    नववर्ष कि बहूत बहूत शुभकामनाये

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  4. bahut subdar....
    nayasaal mubaraq...

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  5. शेखावत साहब!
    वो एक पुराना गीत है ना.. दिल को देखो चेहरा ना देखो.. आप नाम सुनकर भागे जा रहे थे...
    अच्छी लगी यह प्यार मनुहार, रूठना मनाना... नए साल की शुभकामनाएं!!

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  6. सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको एवं आपके परिवार को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  7. आपका ब्लाग बहुत अच्छा लगा। भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    नव वर्ष मंगलमय हो।

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  8. बहुत सुन्दर भावमयी रचना..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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  9. बढ़िया प्रस्तुति मानव मन की अंतस की गुहार .नव वर्ष मुबारक .

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  10. बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना......
    welcome to new post--जिन्दगीं--

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  11. सुंदर रचना।
    गहरे अहसास।

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  12. प्रेम की यही तो रीत है
    गिले-शिकवे,रूठना-मनाना
    यही तो प्रीत है !
    सुंदर प्रस्तुति !

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