हृदय की
अगाध गहराइयों में,
पल्लवित है
एक बेनाम-सा
रिश्ता,
जो अक्सर बगावती
तेवर दिखा ,
चाहता है कोई
नाम अपने लिए,
अब तुम ही कहो,
कहाँ संभव है इस
संवेगहीन दुनियाँ
में किसी को
अपना कहना....
"विक्रम"
दिल मे कुछ भाव उमड़े और जब कौतूहल बढ़ा तो ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया । ये सिलसिला अभी तक तो बद्दस्तूर जारी है। जब भी कुछ नया या पुराना कोई किस्सा दिल मे हलचल पैदा कर बैचेनी बढाने लगता है तो उसे लिखकर कुछ शुकुन हासिल होता है। मगर कभी खुद ही यादों की राख़ टटोलकर चिंगारी खोंजने की नाकाम कोशिश करता हूँ। बस यही फलसफा है ।
आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...