Sunday 30 December 2012

द्रोपदी

क्षितिज की
खोहों तक
पसरा सन्नाटा और
शाखाओं पर बैठे 
शोकाकुल पक्षी,
देकर  उलाहना
भौर की लालिमा को ,
को बता रहे हैं
बीती  रात
का वो स्याह सच ,
और दिखा रहे है
इशारों से
धरा का  वो
सलवटी हिस्सा
जिस पर मिलकर ,
दुशासनों ने
जी-भरकर ,
नोचा-खसोटा और
फेंक दिया जूठन सा
एक द्रोपदी को , मगर
सुनकर उसका 
कारुणिक क्रंदन
नहीं आया कहीं से
एक भी देवकीनंदन

-विक्रम

Saturday 15 December 2012

तनहा सा मकान

सूनी-सी  पगडण्डी के
दुसरे  छोर पर ,
वो  तनहा  सा मकान
खड़ा है संजोये अतीत के
कुछ हसीन लम्हे,
निस्तेज, निस्तब्ध ,सुनसान !
उसकी बूढी दीवारों पे
हरी काली सिवार ,
लिपटी है लिए,
मिलन बिछोह के निशान .
टूटकर झूलता वो दरवाजा ,
किसी ने थामकर जिसे ,
गुजारे थे इन्तजार के
वो बोझिल लम्हे तमाम
-विक्रम 

शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...