Friday 14 March 2014

शब्द

गुजरे वक़्त की,
अलमारियों में
रखी तेरी यादों की
ढेर सी किताबों
में, किसी एक से ,
जब कभी कुछ
शब्द अकुलाकर
सफ़ों से बाहर
आकर मुझसे
मेरे यूँ
बिन बताएं चले
आने का 
सबब पूछते हैं
तो  मैं निरुत्तर-सा
उन शब्दों को
खामोशी से यथास्थान
रख देता हूँ।
विक्रम

शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...