Wednesday 23 May 2012

अनर्थ-शास्त्री

सुखहर्ता-दुखकर्ता
 हे जनता ! क्या कष्ट है तुम्हे ? क्यों नाहक एक अनर्थ-शास्त्री को बुरा भला कहती हो ?वो तो अन्तर्यामी है ,पालनहार है ,तुम्हे महंगाई के भवसागर से उबारने में अपनी अनर्थ-शास्त्रीयत के ऐसे ही जलवे दिखाता रहेगा वो सुखहर्ता-दुखकर्ता है उसकी 'महिमा' अपरम्पार है , सबकुछ जानता है, और उसे ये भी पता है की, उसके भक्त पेट्रोल में सात आठ रूपये की तुच्छ भेंट सहर्ष स्वीकार कर उसे तृप्त करेंगे वो आपके कष्टों को चरम सीमा तक पहुंचाकर आपको इस योग्य बनाने में जुटा है की आप सुनामी जैसे झटके भी हँसते रोते सहन कर सको, और फिर दुनिया की कोई ताकत आपको नेस्तनाबूत नहीं कर पायगी और आप जीवन भर ऐसे ही हिचकोलों को प्रशाद स्वरूप लेते रहोगे कांग्रेस को क्यों कोसते हो ? क्या नहीं दिया इस बेचारी  अबला  सरकार ने आपको ?

अरे वैट, सर्विस टैक्स जैसे २ अनमोल रत्न दिए , पेट्रोल के रेट को आसमान की बुलंदियों पे पहुंचाकर आपकी सहन शक्ति में बेतहाशा इजाफा कर आपके हार्ट को मजबूत किया. भ्रष्टाचार जैसा ससुर और महंगाई जैसी अर्धांगिनी दी जिसकी बदौलत मिलावट जैसी सुन्दर संतान आपकी झोली में डाल दी

अब और क्या चाहिए ? कहाँ ऐसी सराकर मिलेगी जो आपको अन्दर से इतनी मजबूती दे ? वैसे ऐसा नहीं की आपको ही फौलाद सी मजबूती प्रदान की है , खुद को भी बड़े बड़े घोटालों से नवाजा है. भई जब नेता ही मजबूत नहीं होंगे तो भला आपको कैसे सहारा देंगे , तभी तो आज इस महंगाई के दौर में गिरे से गिरा नेता भी २०० , ३०० करोड़ बना कर बैठा है . आज सरकार में माने हुए 'अनर्थशास्त्री' आपको और आपकी अर्थव्यवस्था को लगातार 'मजबूती' प्रदान कर रहे हैं. आपकी छोटी से छोटी कराहट उनके कानों तक पहुँच जाती है और सरकार आपको महंगाई की थपकी देकर सुला देती है जिस से आपको चुटकी बजाते ही तुम्हे परमसुख की अनुभूति होती है

इस से आप छोटी मोटी तकलीफ को हँसते हँसते झेल लेते हो | अभी पेट्रोल के हलके हलके झटके देकर आपको रसोई गैस के  जलजले से निपटने के लिए तैयार किया जा रहा है |आपकी सरकार जानती है की बकरे को खिला पिला के हलाल करने का मजा ही कुछ और है | इसलिए हे प्राणी ! निकट भविष्य में ऐसे छोटे मोटे झटकों की पुनरावृति  कदाचित जारी रहेगी | तूं सयम रख , होश मत गवां |  अपने दुखों की चिंता मत कर ,और तन मन धन से उस मन-मोहन घनश्याम  के सम्मोहन में अपने आपको को समर्पित कर परमसुख  की अनुभूति कर |

जय हो !
"विक्रम"

शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...