दिल मे कुछ भाव उमड़े और जब कौतूहल बढ़ा तो ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया । ये सिलसिला अभी तक तो बद्दस्तूर जारी है। जब भी कुछ नया या पुराना कोई किस्सा दिल मे हलचल पैदा कर बैचेनी बढाने लगता है तो उसे लिखकर कुछ शुकुन हासिल होता है। मगर कभी खुद ही यादों की राख़ टटोलकर चिंगारी खोंजने की नाकाम कोशिश करता हूँ। बस यही फलसफा है ।
Saturday 10 August 2013
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शादी-विवाह और मैरिज ।
आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...
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मैं , तैरकर ना आ सका हमारे दरमियाँ बहते रिवाजों , ऊंच-नीच की लहरों , समाज के बंधनो के भँवर के उस पार.... मगर , मैंने तुम्हारी यादों की एक ना...
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गाँव के स्कूल मे जब जनवरी-फरवरी के महीनों मे सर्दी अपने पूरे शबाब पर होती थी तब हम हफ्ते में 3,4 बार बिना नहाये ही स्कूल चले जाते थे। लेकिन ...
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जब किसी स्कूल के प्रांगण में छोटे बच्चो को मस्ती करते देखता हूँ तो मुझे अपने स्कूल के दिन याद आ जाते हैं। उन दिनो हम स्कूल के अंदर नहीं ग...