मकानो के मालिक
ओर उनके
किराएदार ,
कुछ उसी तरह
सिर्फ मालिक भर हूँ,
में अपने इस दिल का ,
बिना किराए के
किरायेदार
बसते हैं इसमें,रिश्तों का
आरक्षण लेकर,
कुछ मियादी
तो कुछ
बेमियादी रिश्तों
की लीज़ लिए
बैठे हैं......
-विक्रम
दिल मे कुछ भाव उमड़े और जब कौतूहल बढ़ा तो ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया । ये सिलसिला अभी तक तो बद्दस्तूर जारी है। जब भी कुछ नया या पुराना कोई किस्सा दिल मे हलचल पैदा कर बैचेनी बढाने लगता है तो उसे लिखकर कुछ शुकुन हासिल होता है। मगर कभी खुद ही यादों की राख़ टटोलकर चिंगारी खोंजने की नाकाम कोशिश करता हूँ। बस यही फलसफा है ।
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