Saturday 7 April 2012

मेहमानवाजी

सुना है आज पड़ोसी मुल्क से कोई बहुत बड़ी हस्ती का पदार्पण होने वाला है . मिडिया से लेकर सरकारी तंत्र तक पलक पावड़े बिछाये बैठा है.वैसे तो इस पड़ोसी मुल्क से अक्सर आतंकवादी ही इधर घुमने आते हैं, मगर इस बार एक खीसे निपोरते हुए एक राष्ट्रपती आ रहा है , वो आ तो रहा है अपनी निजी (धार्मिक) यात्रा पे जियारत के लिए मगर हमारे नेता तलुवे चाटने का ये हसीन मौका हाथ से नहीं जाने देंगे . तलुवे चाटते हुए चाटुकारिता भरी हुई नज़र से अमेरिका को देखेंगे और मन ही मन कहेंगे की 'देखो ,जैसा आपने कहा उस से भी ज्यादा कर रहे हैं '.

टीवी पे सुबह से उसके कार्यक्रम का एक एक पल का व्रतांत सुनाया जा रहा है . (मेरा ये लेख लिखे जाने तक वो बाथरूम में सायद नहा रहा है ) . दोपहर के खाने के मेनू में ऐसे ऐसे व्यंजनों के नाम गिनाये जा रहे हैं जिनमे बहुतों के कभी नाम सुने ही नहीं . खाने में  शाकाहारी ,मासाहारी दोनों ही शामिल किये गए है . जो इस प्रकार हैं :
शाकाहारी व्यंजन : मेलन-मिंट का ठंडा सूप, सरसों के फूल, सब्ज शम्मी कबाब, मिनी मसाला डोसा, तोरई भुजिया, मकई पालक, भिंडी कुरकुरी अवियाल, मंूग दाल तड़का, सब्ज बिरयानी, कई तरह की रोटियां, ब्लूबेरी मूसे, गुड़ का संदेश, फिरनी, फल।
मांसाहारी व्यंजन : जैतूनी मुर्ग सीख, गोश्त बड़ा कबाब, करेली दाल गोश्त, मुर्ग कोफ्ता मखनी, सिकंदरी खुश्क रान, कच्ची गोश्त बिरयानी।

बेचारी जनता को अप्रत्यक्ष रूप से बता दिया गया है की कम से कम आज के दिन अपना मुंह बंद रखे और रोज की तरह भ्रष्टाचार,महंगाई ,बिजली,पानी की चिल्लमचिल्ली मचाकर मूड ख़राब न करे . हमारे नेता मेहमान नवाजी में हमेशा अव्वल ही रहे हैं , पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति के स्वागत लिए दिन रात एक कर दिया था ,मगर हाथ कुछ नहीं आया . खैर वो तो शक्तिशाली राष्ट्र का शक्तिशाली नुमाईन्दा था मगर ये साहब जो आज तसरीफ ला रहे हैं इन बेचारों की तो कभी अपने घर में भी नहीं चली . पिछले दिनों मुशरफ आया तो तोहफे में कारगिल दे गया , अब देखते हैं ये साहब क्या तोहफा देते हैं.

बहुत दुःख होता है ,दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को अमन शांति के लिए दहशतगर्दों के आगे हाथ फ़ैलाने पड़ते हैं. हर बार अपनी तरफ से शांति की पहल करके हम अपन कह्जोरी ही जता रहे हैं . हम कमजोर नहीं हमारी नुमाइंदगी कमजोर है जिसकी बदौलत कारगिल, संसद, 26 /11 ,आगरा क्रिकेट, अजमेर, हाफिज़ सईद ......जैसे शब्दों की इबारत लिखी जाती है .



शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...