Friday 10 August 2012

छोडो बेकार की बातों को - Circle of Concern


आज हम ज्यादातर उन बातों के बारें में सोचते हैं जो हमारे हाथ  में ही नहीं है , मगर बवजूद इसके हम अपनी एनर्जी बेकार की बातों में जाया करते हैं जैसे ,अन्ना ने अनशन क्यों तोड़ दिया ?  दिग्गी इतना क्यों बोलता है ? बारिश  होगी  या नहीं ?,  इंडिया  मैच  जीतेगी  या नहीं ? , सचिन १०० बना पायेगा या नहीं ? सरकार, महंगाई, अन्दौलन, हिंसां, मौसम  आदि . इसको  कहते हैं "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न ".


एक होता है "सर्कल ऑफ़ इन्फ्लूअन्स (Circle of Influence) " और एक होता  है "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न (Circle of Concern) ". दिए गए चित्र में आंतरिक घेरा  "सर्कल ऑफ़ इन्फ्लूअन्स" और  बाहरी  घेरा "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न" कहलाता है . हर  इंसान इन दो चक्रों  में  जीवनभर घिरा रहता है .


"सर्कल ऑफ़ इन्फ्लूअन्स"  आपका कार्यक्षेत्र है जिसमे आपका पूरा प्रभाव रहता है , जिसपे  आपका नियत्रण है  और  आप जो चाहे उसमे कर सकते हैं . खुशियाँ, परिवार, बच्चे, आमोद-प्रमोद सब इस अन्दर वाले मगर छोटे से चक्र में हैं जो बाहरी चक्र के दवाब में लगातार छोटा होता जा रहा है . इसमे किये गए कार्यों से आपको आत्मसंतुष्टि मिलती है . इसके विपरीत "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न "  वो घेरा है जिसके बारे में आप सोच सोच कर परेशान रहते हैं और जो आपके कार्यक्षेत्र से बाहर है .और इससे सम्बंधित  मुद्दे आपके "सर्कल ऑफ़ इन्फ्लूअन्स" के चक्र को छोटा और "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न " को बड़ा कर देते हैं और नतीजन आप और चिंतित रहने लगते हैं  .

इसलिए बेहतर है आप अपने आंतरिक चक्र को बड़ा आकार दें जिस से आपके "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न ". कम हो जायेंगे जिससे आप और बेहतर ढंग से जीवन-निर्वाह कर सकेंगे .

"कुछ तो लोग कहेगें, लोगो का काम कहना, छोडो बेकार की बातों को, कहीं बीत न जाए रैना,....... "



-"विक्रम" 11th Aug'12

शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...