Monday 19 December 2011

यादें


  वक़्त के साहिल से
  विचारों  के जाल
   अतीत में फेंक कर ,
 निकाल लेता हूँ
  कुछ डूबती  हुई
 यादें .....

  फिर ....

उन्हें जोड़कर ,
सिलसिलेवार....
और दोहराकर,
बना लेता हूँ मजबूत ,
यादों की हिलती बुनियाद

    और फिर ...


छोड़ देता हूँ विचारों को पुन:
अतीत के गहरे गर्त में
ताकि
ला सकें अपने साथ
किसी भूले बिसरे पल को .
सुनी हैं आज फिर
तल से आती फरियादें ...

"विक्रम"
                             
                                                                           : - :




Thursday 15 December 2011

ब्लोगिंग वार ( तीसरा महायुद्ध )

इन्सटाइन ने कहा था की तीसरे युद्ध का तो पता नहीं मगर चौथा पथरों से लड़ा जायेगा.लेकिन आजकल तीसरे युद्ध की शुगबुगाहट शुरू हो गई है.इस युद्ध में किसी अस्त्र शस्त्र की जरुरत नहीं और ना ही किसी परमाणु या ड्रोन की , ये तो चुपके चुपके लड़ा जा रहा है.

आमतौर पर हर युद्ध के पीछे कोई ना कोई कारण होता है , और ठीक उसी तरह इसके पीछे भी कई कारण है. आज भाषा , राज्य ,धर्म और धार्मिक ग्रंथो के नाम पे लड़ा जाने वाला ये है ब्लोगिंग वार. अगर आपकी भाषा सामने वाले से मिलती नहीं तो आप उसके ऊपर कमेन्ट करते हो ,आपका राज्य ,धर्म सामने वाले से अलग है तो आप उसपे टिक्का टिप्पणी करते हो , सामने वाले के ग्रंथों में कही गई बातों को ब्लॉग में उठाकर बहस खड़ी  करते हो.



मैने कुछ ब्लॉग में पोस्ट पढ़ी तो पाया की ब्लॉगर ने इतना गहन शोध अपने मजहब की पुस्तकों को पढनें में नहीं किया होगा जितना दुसरे मजहब की पुस्तकों में, और वो भी सिर्फ इसलिए , की कुछ मसाला मिले जिसे अपने ब्लॉग में लगा सके . दुसरे के धार्मिक ग्रंथों से अच्छी बातें उठाने की जगह कुछ भर्मित तथ्य उछाल कर हंगामा खड़ा करने वाले कोनसे युद्ध की तैयारी में लगे हैं भगवान जाने .

कमोबेश धार्मिक ग्रंथों में कुछ ना कुछ ऐसा जरुर है जो आज सभी को हजम नहीं होता ,कुछ इसको धार्मिक ग्रंथों से की गई छेड़-छाड़ बतातें हैं , कुछ इसको अपने तर्कों से सही ठहराता है .आज एक ब्लॉगर की एक सवेंदनशील टिप्पणी ,हजारों लोगों में शब्दों की खामोश बहस खड़ी कर देती हैं . निकट भविष्य में येही ख़ामोशी तूफान से पहले की ख़ामोशी सिद्ध होगी . फिर आखिर लोग इस तरह के वक्तव्य देकर कोनसी मंजिल पा लेना चाहते हैं.? क्या प्रसिद्धी के लिए इंसानों को गुमराह किया जा रहा है. ? क्या गुमराह होने वाले लोगों की अपनी कोई राय या सोच नहीं क्या उनके पास अपना दिमाग नहीं.? क्यों लोग ऐसे समाज कंटकों की किसी भी बात को सच मान भ्रमित हो जाते हैं.? किया उन्हें अपने धार्मिक में कहीं बातों पे विश्वास नहीं. ? अगर ऐसा है तो क्यों नहीं "इंसानियत धर्म" को अपनाया जाये , जिसमे आपसी भाईचारे  से नकारात्मक   सोचों को धोया जाये.?

अपने धर्मं को ऊँचा और दुसरे के धर्म को नीचा बताने वालों पहले जरा खुद तो इस ऊँच-नीच से  बाहर निकलों ताकि अपने वजूद से रूबरू हो सको .बस एक बार दुसरे के मजहब की इज्जत कर, और फिर देख ,वो तुझे और तेरे धर्म को कितनी इज्जत बक्सता है.
"विक्रम"

Monday 5 December 2011

रघु चाचा

घुटनों पर हाथ रखकर उठने वाले रघु चाचा आज हवा से  बातें कर रहे थे । घर से बाज़ार और बाजार से घर के बीच दोड़ते रहे दिनभर। घर के कोने कोने में झांक कर हर एक चीज की कई कई बार तसल्ली कर चुके थे । रसोई के सभी बर्तन साफ करके करीने से सजा दिए गए थे ,गन्दा सिंक भी आज अपने वास्तविक रूप में आ गया था तथा उसके चारों तरफ जमी काई (सिवार) उतर चुकी थी।  घर के आगे बने चबूतरे पर सोने वाला कुत्ता भी आज अपनी मनपसंद जगह पर नहीं सो पाया , क्योंकि रघु चाचा ने वहां चारपाई डाल दी और कुत्ते को धमका कर पिछवाड़े खड़े पेड़ से बांध दिया।

घर का एकलौता शयन कक्ष आज अपनी पहचान पाकर खुश लग रहा था । रघु चाचा की पिछले 10दिन की मेहनत आज घर के कोने कोने से नजर आ रही थी आज सलभर बाद उनका बेटा नवीन और बहु सुमन शहर से गाँव आ रहे थे। रघु चाचा के बेटे नवीन ने अपनी मनपसंद  की लड़की से पिछले साल विवाह कर लिया था। विवाह से ठीक एक दिन पहले रघु चाचा को फ़ोन से इतल्ला करदी थी। उस दिन रघु चाचा बहुत रोये थे , मगर बेटे को ख़ुशी के आगे घुटने टेक दिए और फोन पर ही बेटे को आशीर्वाद देकर पिता होने का फ़र्ज़ पूरा कर दिया था।

वक़्त के साथ साथ रघु चाचा , बेटे द्वारा की गई उपेक्षा को भूल गए और आज बेटे के स्वागत के लिए तैयार होने लगे। निर्मला चाची के देहांत के समय नवीन मात्र 10साल का था ,तब से रघु चाचा ने नवीन को माँ बनकर पाला था । नवीन पच्चीस साल का हो चूका था मगर रघु चाचा उसे आज भी 10 साल का बच्चा समझ खुद उसके लिए खाना बनाते थे । मगर आज रघु चाचा अपनी बहु के हाथ का बना खाना खायेंगे। बरसों बाद पका पकाया खाने को मिलेगा। खाने का ख्याल आते ही रघु चाचा फिर से रसोई में रखी हर सामग्री का मुआयना करते की कहीं कुछ कमी ना रह जाये वरना बहु सुमन क्या सोचेगी।

पूरी तस्सली होने के बाद बाहर चबूतरे पे पड़ी चारपाई पर आकर बैठ गए और बहु के आने के बाद की घटनावों को मन ही मन सोचकर मुस्कराने लगे। आते ही बहु रसोईघर में घुस गई ,कुछ पलों बाद खाने की महक घर की दीवारें लांघकर चबूतरे पर बैठे रघु चाचा के नथुनों तक जा पहुंची और इसके बाद रघु चाचा एक लम्बी साँस लेकर मुश्कराए और पैर फैलाकर लेट गए।

अचानक बजी फ़ोन की घंटी ने रघु चाचा को यथार्त के धरातल पे जोर से पटका और उसके बाद आँख मलते हुए अन्दर भागे । फ़ोन का चोंगा उठाते ही दूसरी तरफ से नवीन की आवाज़ आई; पापा , ....वो.., सुमन की मम्मी हमारे पास रहने को आई हुई हैं , और वो अभी चार पांच महीने हमारे साथ ही रहेंगी .. तो.. इसलिए , इस बार हम नहीं आयेंगे पापा , आप अपना ख्याल रखिएगा । इतना कहकर दूसरी तरफ से फ़ोन काट दिया।


विक्रम

शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...