Wednesday 25 November 2015

मुद्दे


जुगालियाँ करते हैं लोग  ,
मुद्दों की दिन-रात,
आदि हो गए है चबाने के,
कोई एक जन,
किसी के हलक से,
तो कोई
अखबार की कतरनों से,
उठा लाते हैं ताज़ा या बासी मुद्दे ,
और उछाल देते है
हवा मे,
छीना-झपटी के दरमियाँ,
बदल जाते हैं मायने मुद्दों के ।
दमदार दलीलें
बदल देती हैं,
मुद्दों के अभिप्राय !


"विक्रम"

शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...