Saturday 14 October 2017

दर-ब-दर

बालिश्त दर बालिश्त
गुजरती उम्र,
गिनती रही पोरों
पे वो पड़ाव ,जो
बदलते रहे मायने
ज़िंदगी के ,
यादों की पुनरावृतियां
लाती रही सुनामीयां, 
बस यूँ कटता रहा
उबाऊ सफर
अनिश्चितताओं
के संग
दर-ब-दर..... बदस्तूर....

"विक्रम"

Sunday 8 October 2017

अतीत

वक़्त के घोड़े पे सवार,
अतीत को पहलू में दबा , 
भागता रहा वो ताउम्र, 
मगर....
यादों के नुकीले तीर,
भेदते रहे,उसके
जिस्म-ओ-जान को,
और नोचते रहे ,
ज़हन से चिपके
अतीत के उस
हर एक लम्हे को….
-ak
 
 
 
 

Friday 6 October 2017

यादों की जुंबिश

 

सुषुप्त शरीर में,
सिहरन-सी 
भर देती हैं 
यादों की एक 
हल्की-सी जुंबिश,
मगर....
बाद इसके
अंदर से कुछ 
यूँ टुकड़ों में 
बिखर जाता है,
बाद तूफान के
बिखरता है कोई 
आशियाना जैसे.....

 
"विक्रम"


शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...