Saturday 14 October 2017

दर-ब-दर

बालिश्त दर बालिश्त
गुजरती उम्र,
गिनती रही पोरों
पे वो पड़ाव ,जो
बदलते रहे मायने
ज़िंदगी के ,
यादों की पुनरावृतियां
लाती रही सुनामीयां, 
बस यूँ कटता रहा
उबाऊ सफर
अनिश्चितताओं
के संग
दर-ब-दर..... बदस्तूर....

"विक्रम"

2 comments:

शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...