Saturday 27 April 2013

अंधेरा

बैठकर कुछ पल
इंतजार के सूने पहलू मेँ,
सिसकती शाम गुजर गई  
छोड़कर  तन्हा सुसप्त
तन्हाईयां 


शैशव अधेरा घुटनों के बल ,
रेंगता हुआ ताकता है डर से
बादलों से झाँकते चाँद को,
चंचल चाँदनी रातभर, खेलती हैं
अंधेरे के खंडित अस्तित्व से ।
 
नवयौवना सी अल्हड़ चाँदनी
डालकर गलबहियाँ, चाँद को
मुस्कराती है मंद मंद और,
चिढ़ाती है अपाहिज अंधेरे को ।

तरुण ज्योत्स्ना के मोहपाश मेँ
आलिंगनबद्ध चाँद, सो गया  
पलभर को खोकर होशोहवास  ,
हो गया हरण, बेसुध चाँदनी का ,
ले उड़ा उसे अंधेरा
दूर .....बहुत दूर....

 
विक्रम”

 

Tuesday 16 April 2013

पल


मैं अक्सर ,  
अतीत के झुरमुटों से,
बीते हुये पल चुनता हूँ
 
धूल से सने मुस्कराते पल
भूले बिसरे  कुमलाते पल

तुम्हारी हँसी से खिले पल
शिद्दत से टूटकर मिले पल

मिले हैं कुछ शिकायती पल
मगर हैं  बड़े किफ़ायती पल

बैठे हैं ऐंठकर कुछ रूठे पल
गुस्से से तुनककर उठे पल

मुझे देख होते, हैरान से पल
खामोश और परेशान से पल

कुछ मेरे कुछ तुम्हारे पल
सब मिल बने  हमारे पल

 
//विक्रम

 

 

Wednesday 10 April 2013

गुड़गाँव बनाम गुड़शहर

पिछले एक हफ्ते से गुड़गाँव में हूँ.  ये वो गुड़गाँव है  जो पिछले एक दशक से इतना विकसित हो गया की दस साल पहले यहाँ आए इंसान को आज दुबारा यहाँ आने पर वो पुराना गुड़गाँव नहीं मिलेगा। यहाँ एक से एक बड़ी कंपनी और एक से एक बड़ी और आलीशान गगनचुंबी  इमारतों की लंबी कतार लगी है । हमारी कंपनी का गेस्ट हाउस एक 18 मंज़िला इमारत (यूनि वर्ल्ड सिटि) में हैं, जिसमे हर फ्लोर पर 16 मकान हैं ,लेकिन बावजूद इसके वहाँ सायद ही किसी मकान से किसी की आवाज सुनाई देती हो।
 सब कुछ शांत , किसी को किसी से बात करने तक की फुर्सत नहीं। ऐसा लगता है जैसे यहाँ इंसान घरों मे नहीं "पिंजरों" में रहते हैं  जो अल-सुबह खाने की तलाश में उड़ जाते हैं और रात घिरते घिरते एक एक
...“जहां बड़ी बड़ी कंपनियाँ और आलीशान अपार्टमेंट होंगे वहाँ बड़े बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और बड़े बड़े शोरूम कूकरमुत्तों की तरह रातों-रात पैदा हो जाते हैं।  
  करके उन पिंजरों मे बंद हो जाते हैं । बगल वाले मकान में कौन है ? कितने आदमी हैं , हैं भी या नहीं ? किसी को कुछ लेना देना नहीं। सुबह और शाम को देर रात तक सड़कों  पे इन्सानों की रेलमठेल लगी रहती है जो दोपहर होने से कुछ पहले और शाम ढलने से कुछ पहले के समय कम होती है ।
 जहां बड़ी बड़ी कंपनियाँ और आलीशान अपार्टमेंट होंगे वहाँ बड़े बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और बड़े बड़े शोरूम कूकरमुत्तों की तरह रातों-रात पैदा हो जाते हैं।

 ये बदलाव ही असल मे महंगाई की मुख्य वजह है। ऐसे परिवर्तनों से आम आदमी दब कर रह जाता है और अपने आपको बहुत असहज महसूस करने लगता है। बड़े ब्रांड के शो-रूम जहां आम आदमी के लिए कोतूहल का विषय है वहीं धनी लोगों के लिए पैसे खर्च करने का जरिया मात्र । आलीशान रिहायशी घरों मे रहने वाले लोग एक साथ डाइनिंग टेबल पर बैठकर शायद ही कभी खाना खाते होंगे , वो तो बाहर पीज़ा, बर्गर या नूडल्स खाते हुये मिलेंगे या फिर देर रात तक पार्टी या किसी क्लब मे, जो उनके लिए एक तरह की सामाजिक गतिविधिहै। 
 कहते हैं की पड़ौसी ही पड़ौसी के काम आता है”, लेकिन यहाँ तो पड़ौसी पड़ौसी को ही नहीं जानता , और तो और एक ही परिवार के लोग कभी कभी कई कई दिन के बाद मिल ही पाते हैं। किसी के पास किसी से मिलने या दो बात करने तक का वक्त नहीं। फिर ये इतनी भागदौड़ जद्दोजहद किस लिए ?
 
आने वालों कुछ सालों मे शायद गुड़गाँव का नाम बदलकर गुड़शहररखना पड़े।


“विक्रम” (11-04-2013)

शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...