पिछले एक हफ्ते से गुड़गाँव में हूँ. ये वो गुड़गाँव है जो पिछले एक दशक से इतना विकसित हो गया की दस साल पहले यहाँ आए इंसान को आज दुबारा यहाँ आने पर वो पुराना गुड़गाँव नहीं मिलेगा। यहाँ एक से एक बड़ी कंपनी और एक से एक बड़ी और आलीशान गगनचुंबी इमारतों की लंबी कतार लगी है । हमारी कंपनी का गेस्ट हाउस एक 18 मंज़िला इमारत (यूनि वर्ल्ड सिटि) में हैं, जिसमे हर फ्लोर पर 16 मकान हैं ,लेकिन बावजूद इसके वहाँ सायद ही किसी मकान से किसी की आवाज सुनाई देती हो।
सब कुछ शांत , किसी को किसी से बात करने तक की फुर्सत नहीं। ऐसा लगता है जैसे यहाँ इंसान घरों मे नहीं "पिंजरों" में रहते हैं जो अल-सुबह खाने की तलाश में उड़ जाते हैं और रात घिरते घिरते एक एक
जहां बड़ी बड़ी कंपनियाँ और आलीशान अपार्टमेंट होंगे वहाँ बड़े बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और बड़े बड़े शोरूम कूकरमुत्तों की तरह रातों-रात पैदा हो जाते हैं। ...“जहां बड़ी बड़ी कंपनियाँ और आलीशान अपार्टमेंट होंगे वहाँ बड़े बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और बड़े बड़े शोरूम कूकरमुत्तों की तरह रातों-रात पैदा हो जाते हैं।
करके उन पिंजरों मे बंद हो जाते हैं । बगल वाले मकान में कौन है ? कितने आदमी हैं , हैं भी या नहीं ? किसी को कुछ लेना देना नहीं। सुबह और शाम को देर रात तक सड़कों पे इन्सानों की रेलमठेल लगी रहती है जो दोपहर होने से कुछ पहले और शाम ढलने से कुछ पहले के समय कम होती है । आने वालों कुछ सालों मे शायद गुड़गाँव का नाम बदलकर “गुड़शहर” रखना पड़े।
“विक्रम” (11-04-2013)
bahut acha likha hai dada
ReplyDeleteGud aur gaon dono khtm ho chuke
ReplyDeleteRamram
अब देखा जाये तो खुद आम आदमी स्वयं आम बनकर नहीं रहना चाहता और समय के साथ दौड़ लगाने पर उतारू है तो ये सब बदलाव भी तेज़ी ही लाएँगे। सबसे बड़ी बात ये की हवा सी गति जेसी दौड़ मे भी ये कहीं न कहीं अपनी मूल की मिट्टी की सुगंध महसूस करते ही है और थोड़ा सुकून भी पाने की कोशिश भी करते हैं।
ReplyDeleteवास्तविक अभिव्यक्ति है hkm
आपकी रचना ने तो शहरो के रह्नसन का गुड गोबर कर के रख दिया है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ये स्थिति किसी भी महानगर की है ... तेज़ी से भाग रहे हैं लोग ओर साथ साथ शहर भी ...
ReplyDeleteहर शहर का हाल यही है ....
ReplyDeleteहर महानगर का यही दर्द है...सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteशहरों का विकास हो रहा है पर सिर्फ और सिर्फ धनी लोगों के लिए गरीब के लिए यहाँ कोई जगह नहीं !!
ReplyDeleteगुरु ग्राम में सारे गुरु इकट्ठे हो लिए।
ReplyDeleteमैंने भी कई जगह महसूस किया है शहरों में लोग एक दूसरे से कटे कटे से रहते हैं,लोगों के पास समय ही नही है जान-पहचान करने के लिए.बहुत ही सार्थक आलेख.
ReplyDeleteपरिवर्तन संसार का नियम हैं. मशीनरी जीवन से गाँवों का शहरीकरण !
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