Tuesday 13 November 2012

मिठाई

अस्पताल के बरामदे मे अपनी बारी  के इंतजार मे खड़ा  बुधिया  बड़ी उत्सुकता से छोटी होती लाइन को देख रहा था। वह बार बार बैठकर अपनी थकान मिटाने की कोशिश कर रहा था। पिछले पाँच दिन से उसे कुछ भी काम नहीं मिला थे , जिसके चलते 3 दिन से घर मे चूल्हा भी नहीं जला।


 तुम !” , डॉक्टर ने उसे पहचानते हुये कहा। तुमने तो दो हफ्ते पहले खून दिया था ना? 

जी... हाँ डॉक्टर साहब, बुधिया ने दीनता से मुस्कराकर  हाथ जोड़ते हुये कहा ।

 लेकिन..... तुम इतनी जल्दी दुबारा खून नहीं दे सकते

 साहब , दया कीजिये , मेरा खून देना जरूरी है । मुझे पैसों की सख्त जरूरत  है। “ , बुधिया ने डॉक्टर के पैरों की तरफ हाथ बढ़ाते हुये कहा।


“नहीं” ,डॉक्टर ने बिना उसकी तरफ देखे इंकार ए सिर हिलाते हुये कहा।

“.....”,बुधिया  ने डॉक्टर के पैरों के पास बैठते हुये हाथ जोड़कर लगभग रो देने वाले अंदाज मे विनती की।  

 “लेकिन ऐसे इतनी जल्दी दुबारा खून देने से तुम्हें बहुत कमजोरी महसूस होगी, तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। , डॉक्टर ने उसे समझाया ।

 

 “लेकिन मे ठीक हूँ , देखिये , बुधिया ने खड़े होकर अपना सीना आगे की तरफ निकालकर  ताकत दर्शाते हुये कहा ।
 

डॉक्टर ने नर्स की तरफ उसका खून लेने का इशारा किया । इशारा पाते  ही बुधिया मुस्कराता हुआ नर्स के पीछे पीछे चल पड़ा।
 

खून देने के बाद काउंटर से पैसे लेते वक़्त  बुधिया के चेहरे पे मुस्कान और गहरी हो गई और अस्पताल से बाहर आकार तेज़ कदमों से मिठाई की दुकान की तरफ बढ़ गया।  सुबह जब आस पड़ोस मे एक दूसरे के घरों मे दिवाली की मिठाइयों का आदान प्रदान हो रहा था तो उसके तीन से भूखे बच्चे ललचाई नजरों से उन्हे देख रहे थे ।  

/AK    

 

 


    
 

 


-विक्रम  
 

7 comments:

  1. मार्मिक पर कितना सच ...
    अभी तक देश में ऐसे हालात हैं ये शर्म की बात है ... तरक्की का नारा कितना खोखला है इसी से पता चलता है ..

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  2. बहुत मार्मिक

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  3. दिल को छू गयी। सीचने पर विवश हो गया। वास्तव में गरीबी एक मानसिक स्थिति है या एक एसा जाल जिसमे से निकलना चाहते हुए भी इंसान और और फास्ता जाता हैं

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  4. राज्पुय साहब वाह नमन दिल हात ने आ जाये ऐसा लिखा हैं

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  5. Nanak dukhia sab sansar.Jagat mein aisi halat hai lekin dekhne ki himmat kaun karta hai.

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  6. Har kisi mein aiisa dekhne ki himmat nahi hoti.

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