Wednesday 25 November 2015

मुद्दे


जुगालियाँ करते हैं लोग  ,
मुद्दों की दिन-रात,
आदि हो गए है चबाने के,
कोई एक जन,
किसी के हलक से,
तो कोई
अखबार की कतरनों से,
उठा लाते हैं ताज़ा या बासी मुद्दे ,
और उछाल देते है
हवा मे,
छीना-झपटी के दरमियाँ,
बदल जाते हैं मायने मुद्दों के ।
दमदार दलीलें
बदल देती हैं,
मुद्दों के अभिप्राय !


"विक्रम"

2 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (27.11.2015) को "सहिष्णुता का अर्थ"(चर्चा अंक-2173) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!

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  2. गहन चिंतन - प्रशंसनीय प्रस्तुति

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