वक़्त
निरंतर रौंदें
जा रहा है ,
और ....मै ,
अविरल
निकालता रहता हूँ ,
तेरी धूल-धूसरित
विदित-अविदित
यादों को ,
और रख लेता हूँ
सिलसिलेवार
ज़हन में ।
चलता रहता है ये खेल
अविच्छिन्न ....
अविरत ....
अनवरत ....
"विक्रम"
निरंतर रौंदें
जा रहा है ,
और ....मै ,
अविरल
निकालता रहता हूँ ,
तेरी धूल-धूसरित
विदित-अविदित
यादों को ,
और रख लेता हूँ
सिलसिलेवार
ज़हन में ।
वक़्त…और,
मेरे दरमियाँ,चलता रहता है ये खेल
अविच्छिन्न ....
अविरत ....
अनवरत ....
"विक्रम"
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