Monday 14 December 2015

निर्लज कोहरा


भीगी हुई सुबह को,
आगोश मे दबोचकर,
आतुर और उन्मादी
कोहरा,तल्लीनता से
संसर्ग करता है
 


खुमार मे अलसाई
सुबह  भी,
पड़ी रहती है
बेसुध- सी,देर तक
कोहरे के आगोश मे


भोर की किरणों
से शरमाकर भाग
खड़ा होता है निर्लज !
कोहरा ।


 

“विक्रम”

2 comments:

  1. कोहरे का संसार सब को जकड़ लेता है ... अच्छी रचना ...

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