दिल मे कुछ भाव उमड़े और जब कौतूहल बढ़ा तो ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया । ये सिलसिला अभी तक तो बद्दस्तूर जारी है। जब भी कुछ नया या पुराना कोई किस्सा दिल मे हलचल पैदा कर बैचेनी बढाने लगता है तो उसे लिखकर कुछ शुकुन हासिल होता है। मगर कभी खुद ही यादों की राख़ टटोलकर चिंगारी खोंजने की नाकाम कोशिश करता हूँ। बस यही फलसफा है ।
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शादी-विवाह और मैरिज ।
आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...
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जब किसी स्कूल के प्रांगण में छोटे बच्चो को मस्ती करते देखता हूँ तो मुझे अपने स्कूल के दिन याद आ जाते हैं। उन दिनो हम स्कूल के अंदर नहीं ग...
वाह......
ReplyDeleteबेहद कोमल अभिव्यक्ति.
अनु
बहुत उम्दा प्रस्तुति ,,,, बधाई।
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति
ReplyDeleteतन्हा मकान ... और उसका दरवाजा जिस पर खड़े हो किसी ने वक़्त बिताया था इंतज़ार में ... बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDelete"उसकी बूढी दीवारों पे
ReplyDeleteहरी काली सिवार,
लिपटी है लिए,
मिलन बिछोह के निशान"
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना..
ReplyDeleteकितनी यादें हैं बाबस्ता उस तन्हा मकां के साथ ...
ReplyDeleteमर्म को छूती हुई रचना ...
टूटकर झूलता वो दरवाजा ,
किसी ने थामकर जिसे ,
गुजारे थे इन्तजार के
वो बोझिल लम्हे तमाम…
वाऽह !
बहुत खूब !
विक्रम जी
सुंदर कविता
शुभकामनाओं सहित…
सूनी-सी पगडण्डी के
ReplyDeleteदुसरे छोर पर ,
वो तनहा सा मकान
बहुत सुन्दर रचना है आपकी विक्रम जी।
सूनी-सी पगडण्डी के
ReplyDeleteदुसरे छोर पर ,
वो तनहा सा मकान
बहुत सुन्दर रचना। विक्रम जी
सुन्दर आलेखन के लिए ढेरों शुभकामनाएं
बहुत सुंदर कोमल भावभीनी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपकी इस कविता के ज़रिए ये तन्हा सा मकान बहुत कुछ कह रहा है।।।
ReplyDeleteटूटकर झूलता वो दरवाजा ,
ReplyDeleteकिसी ने थामकर जिसे ,
गुजारे थे इन्तजार के
वो बोझिल लम्हे तमाम
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
आज का यह तन्हा मकान कभी आबाद था
ReplyDeleteसुंदर अभिवयक्ति की आपने