Saturday 15 December 2012

तनहा सा मकान

सूनी-सी  पगडण्डी के
दुसरे  छोर पर ,
वो  तनहा  सा मकान
खड़ा है संजोये अतीत के
कुछ हसीन लम्हे,
निस्तेज, निस्तब्ध ,सुनसान !
उसकी बूढी दीवारों पे
हरी काली सिवार ,
लिपटी है लिए,
मिलन बिछोह के निशान .
टूटकर झूलता वो दरवाजा ,
किसी ने थामकर जिसे ,
गुजारे थे इन्तजार के
वो बोझिल लम्हे तमाम
-विक्रम 

14 comments:

  1. वाह......
    बेहद कोमल अभिव्यक्ति.
    अनु

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  2. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति

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  3. तन्हा मकान ... और उसका दरवाजा जिस पर खड़े हो किसी ने वक़्त बिताया था इंतज़ार में ... बहुत सुंदर रचना ।

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  4. "उसकी बूढी दीवारों पे
    हरी काली सिवार,
    लिपटी है लिए,
    मिलन बिछोह के निशान"

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  5. बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना..

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  6. कितनी यादें हैं बाबस्ता उस तन्हा मकां के साथ ...
    मर्म को छूती हुई रचना ...

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  7. टूटकर झूलता वो दरवाजा ,
    किसी ने थामकर जिसे ,
    गुजारे थे इन्तजार के
    वो बोझिल लम्हे तमाम…

    वाऽह !
    बहुत खूब !

    विक्रम जी
    सुंदर कविता

    शुभकामनाओं सहित…

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  8. सूनी-सी पगडण्डी के
    दुसरे छोर पर ,
    वो तनहा सा मकान
    बहुत सुन्‍दर रचना है आपकी विक्रम जी।

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  9. सूनी-सी पगडण्डी के
    दुसरे छोर पर ,
    वो तनहा सा मकान

    बहुत सुन्‍दर रचना। विक्रम जी

    सुन्‍दर आलेखन के लिए ढेरों शुभकामनाएं

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  10. बहुत सुंदर कोमल भावभीनी प्रस्तुति ।

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  11. आपकी इस कविता के ज़रिए ये तन्हा सा मकान बहुत कुछ कह रहा है।।।

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  12. टूटकर झूलता वो दरवाजा ,
    किसी ने थामकर जिसे ,
    गुजारे थे इन्तजार के
    वो बोझिल लम्हे तमाम
    वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  13. आज का यह तन्हा मकान कभी आबाद था
    सुंदर अभिवयक्ति की आपने

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