टूटे फूटे से अरमान उठा लाया हूँ
ताकि पहचान सको बरसों बाद मुझे
वो खिड़की ,वो पगडंडी ,वो छत की मुंडेर ...
कुछ भी तो नहीं बदला |
फिर क्यों है अनजाना सा हर एक लम्हा,
क्यों पसरी है ख़ामोशी
उस खिड़की से लेकर
सामने के बंद दरवाजे तक |
जहाँ कभी निष्प्राण से निहारते थे ,
लयबद्ध धडकते दो जवां दिल |
नजरो की कोमल सलाइयों से
बुना करते थे हसीन खवाब |
सामने की वो झील सूख चुकी है
जहाँ रात भर झींगुर गाते थे |
धुप या बरसात का बहाना बना
पीछे खड़ा वो पेड़ भी मुरझा चूका है |
छत का वो कोना मायूस पड़ा है
जहाँ कभी हसीन ख्वाब मचलते थे
वो मुंडेर भी उन संजीदा यादों को
बचा न सकी वक्त के थपेड़ों से
सड़क बन चुकी वो पतली सी पगडंडी ,
पथरों में दब गई किनारों की वो हरी घास
प्रतिस्पर्धा रखते हैं मेरे अरमानों से
छत पे खाली पड़े टूटे फूटे से गमले
"विक्रम"
छत का वो कोना मायूस पड़ा है
ReplyDeleteजहाँ कभी हसीन ख्वाब मचलते थे
वो मुंडेर भी उन संजीदा यादों को
बचा न सकी वक्त के थपेड़ों से
अति सुन्दर अभिव्यक्ति ,सच वक्त के साथ आया बदलाव कभी खुसी
तो कभी मायूस भी कर जाता है
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteसुन्दर कविता । हार्दिक धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुन्दर, समय के आगे कौन टिका है!
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteबसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।
bahut sundar kavita ...adhunikikaran ka prbhav bata rahi hai ...bahut sundar kavita
ReplyDeleteअति उत्तम......
ReplyDeleteबसंत पंचमी की शुभकामनायें
ReplyDeleteविक्रम जी आपकी यह कविता पड़कर मुझे भी अपने गांव का दृश्य नजर आ रहा है! अच्छी रचना है बधाई !!
ReplyDeletebehad prabhaavshaali rachna, sach mein gaanv ab gaanv nahin rahe, pattharon mein chun diye gaye...
ReplyDeleteसड़क बन चुकी वो पतली सी पगडंडी ,
पथरों में दब गई किनारों की वो हरी घास
प्रतिस्पर्धा रखते हैं मेरे अरमानों से
छत पे खाली पड़े टूटे फूटे से गमले
bahut hi sundar prabhavshali rachana lagi..... badhai.
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति लिए पंक्तियाँ ....गाँव छूटा बहुत कुछ छूट जाता है....
ReplyDeleteप्रेम की कोमल भावनाओं की अक्षुण्णता में ही संबंधों की गरिमा है।
ReplyDeleteबेहतरीन भाव की सुंदर रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति,
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
बहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
bahut bhavmayi rachna....kuch naya padhne ko mila..aabhar
ReplyDeleteअपने अतीत के प्रति अनुराग मानव स्वभाव में है. बहुत सुंदर रचना है.
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