Saturday 7 January 2012

दस्तक

  
     स्थिर,निष्प्रभ,निश्तब्ध दिल पे
    गाहे बगाहे दे जाती हो दस्तक
    और छेड़ जाती हो हलचलों का 
     एक अंतहीन सा सिलसिला...




 

इस कशमकश में बटोरने लगता हूँ
उन हसीन पलों को, जो साक्षी थे
कभी उस सफ़र के जो बसर हुआ
बिना कुछ कहे बिना कुछ सुने





बस यही मुसलसल रिश्ता है
हमारे दरमियाँ निभाने को ,
जो बसर हो रहा है शिद्दत से
एक तन्हा सफ़र की तरह .....



में जिंदा हूँ तो बस, वक़्त बेवक्त की
आहटों ,दस्तकों और धडकनों
के धमाकों से गिरी यादों के पलों
को उठाकर सहेजने को ,क्योंकि
कुछ तो बहाना हो नीरस सा जीवन
व्यतित करने को ... . . . .

"विक्रम"





















15 comments:

  1. यही जीवन है ! कुछ पाना कुछ खोना, कुछ छूटना तो कुछ सहेजना और इसी उपक्रम में हमारा जीवन बीत जाता है ।

    संजोते रहिये उन हसीन पलों को और पिरोते रहिये शब्दों में ।
    मन से निकले उदगार !

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  2. इसे ज़िंदगी का एक हिस्सा मानिये ......

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  3. बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना! बधाई!

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति बढ़िया रचना,....
    welcom to new post --"काव्यान्जलि"--

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  5. जीने के लिए कोई-न -कोई उम्मीद तो चाहिए ही ...सार्थक रचना

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  6. बहुत बेहतरीन....

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  7. यादें कितना कुछ दे जाती हैं जीने के लिए!

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  8. ये हसीं पल ही तो जिंदगी के साथी है.... बहुत ही भावपूर्ण एवं सुंदर प्रस्तुति

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  9. जीवन की सटीक परिभाषा।
    बधाई........

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  10. बहुत उम्दा रचना है......यादें ही जीवन की पूंजी होती है ,कुछ खट्टी कुछ मीठी, उन यादों के सहारे ही जीवन की नीरसता से लड़ाई करते हुए आगे बढ़ा जा सकता है.......

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  11. आपके पोस्ट से बहुत कुछ सीखने औप जानने का मौका मिला । प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा ।

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  12. जब बहुत सी हसरतें पूरी हो जाती हैं तब जीवन नीरस हो जाता है. प्रेम को विकसित करने का यही समय होता है. बढ़िया रचना.

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  13. bahut hi samvedansheel rachana ....badhai rajpoot ji

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