आता है नजर
वक़्त की धुंध में एक धुंधला सा चेहरा
वक़्त की धुंध में एक धुंधला सा चेहरा
बना लेता हूँ उसके नयन नक्श फिर
धीरे से उभर आता है तेरा अक्श फिर
हर रोज यूँ में ख्यालों में बनाकर तुम्हे
बस बैठा लेता हूँ सामने सजाकर तुम्हे
रोज की भांति गिले-शिकवों का एक दौर
चला हमारे दरमियाँ इस और से उस ओर
अंत में हम अनन्त मनुहार के उत्कर्ष पे
जा मिले फिर यूँ प्यार के चरमोत्कर्ष पे
जा मिले फिर यूँ प्यार के चरमोत्कर्ष पे
जाता है निखर
यूँ प्यार के द्वंद में दूध सा धुला चेहरा
यूँ प्यार के द्वंद में दूध सा धुला चेहरा
"विक्रम"
नव वर्ष मंगलमय हो ..
ReplyDeleteबहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें
सुरन्द्र जी , आपको भी नववर्ष के मंगल कामनाएं
ReplyDeleteसुंदर भावमयी प्रस्तुती....
ReplyDeleteनववर्ष आपके जीवन में अपार खुशिया लेकर आये....
नववर्ष कि बहूत बहूत शुभकामनाये
bahut subdar....
ReplyDeletenayasaal mubaraq...
शेखावत साहब!
ReplyDeleteवो एक पुराना गीत है ना.. दिल को देखो चेहरा ना देखो.. आप नाम सुनकर भागे जा रहे थे...
अच्छी लगी यह प्यार मनुहार, रूठना मनाना... नए साल की शुभकामनाएं!!
Waah Ak Kavi Saheb!!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
आपका ब्लाग बहुत अच्छा लगा। भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो।
बहुत सुन्दर भावमयी रचना..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति मानव मन की अंतस की गुहार .नव वर्ष मुबारक .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना......
ReplyDeletewelcome to new post--जिन्दगीं--
सुंदर रचना।
ReplyDeleteगहरे अहसास।
प्रेम की यही तो रीत है
ReplyDeleteगिले-शिकवे,रूठना-मनाना
यही तो प्रीत है !
सुंदर प्रस्तुति !