गुजरे वक़्त की,
अलमारियों में
रखी तेरी यादों की
ढेर सी किताबों
में, किसी एक से ,
जब कभी कुछ
शब्द अकुलाकर
सफ़ों से बाहर
आकर मुझसे
मेरे यूँ
बिन बताएं चले
आने का
सबब पूछते हैं
तो मैं निरुत्तर-सा
उन शब्दों को
खामोशी से यथास्थान
रख देता हूँ।
“विक्रम”
बेहद भावपूर्ण, बधाई.
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति ...!
ReplyDeleteRECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.
यादें ऐसी हो होती हैं ... झट से आ जाती हैं ... बहुत भावपूर्ण रचना ...
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