जब दिल के
समुन्द्र मे
तेरी यादों का ज्वार-भाटा
ठांठे मारने लगता है।
तब में,
कागज की कस्ती और
कलम की पतवार लेकर
निकल पड़ता हूँ
समझाने
उन उफनती
लहरों को,
जो बिखर जाना
चाहती है,
तोड़कर
दिल की
मेड़ को ....
-विक्रम
दिल मे कुछ भाव उमड़े और जब कौतूहल बढ़ा तो ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया । ये सिलसिला अभी तक तो बद्दस्तूर जारी है। जब भी कुछ नया या पुराना कोई किस्सा दिल मे हलचल पैदा कर बैचेनी बढाने लगता है तो उसे लिखकर कुछ शुकुन हासिल होता है। मगर कभी खुद ही यादों की राख़ टटोलकर चिंगारी खोंजने की नाकाम कोशिश करता हूँ। बस यही फलसफा है ।
आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...
इन लहरों को बिखर जाने देन .. ये सूखती नहीं हैं ... रेत पर प्रेम की नमी बिखरा देती हैं ... सुन्दर शब्द ...
ReplyDeleteVery nice..
Deleteबहुत सुंदर रचना और अभिव्यक्ति .....!!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
hut badhiya abhiwayakti ......
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब !!
ReplyDeleteBahut Hi Badhiya.....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसमय अंतराल बाद ज्वार-भाटा भी उतर जाता है ...
ReplyDeleteमनोभाव का सुन्दर प्रस्तुति
बहुत खूब
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति
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