Saturday 27 July 2013

- यादों का ज्वार-भाटा–

जब दिल के
समुन्द्र मे
तेरी यादों का ज्वार-भाटा
ठांठे मारने लगता है।  
तब में,
कागज की कस्ती और
कलम की पतवार लेकर
निकल पड़ता हूँ
समझाने
उन उफनती
लहरों को,
जो बिखर जाना
चाहती है,
तोड़कर
दिल की
मेड़ को ....
 
-विक्रम

12 comments:

  1. इन लहरों को बिखर जाने देन .. ये सूखती नहीं हैं ... रेत पर प्रेम की नमी बिखरा देती हैं ... सुन्दर शब्द ...

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  2. बहुत सुंदर रचना और अभिव्यक्ति .....!!

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  3. बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.

    रामराम.

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  4. वाह ! बहुत खूब !!

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  6. समय अंतराल बाद ज्वार-भाटा भी उतर जाता है ...
    मनोभाव का सुन्दर प्रस्तुति

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  7. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति

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