Saturday 24 May 2014

मौसम

मौसम की करवटों
के दरमियाँ, तेरी यादों
से विह्वल लम्हे  ,
आँखें मलते हुये
जाग उठते हैं
चिर-निद्रा से।
 
चुपके से मैं,
कुछ भूले हुये से लम्हों
को ,वक़्त की
हथेली पर रखकर,
याद करने लगता हूँ
उन लम्हों के जन्म
के वो पल ,
जो अब असपष्ट से हैं
मेरे मानस पटल पर ।
 
कुछ खास लम्हे ,
मुझे देखते ही मुस्कराने
लगते हैं , मै बेबस सा
उनकी मासूम सी
मुस्कराहटों के जवाब में
मैं, बस मुस्करा देता हूँ
दबाकर आंदोलन
आँसूओं का   
“विक्रम”
 
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 

3 comments:

  1. यादों को रोकना मुश्किल होता है ... पर आंसुओं को रोकना भी आसान नहीं ... लम्हों की दास्ताँ से दिल तो वाकिफ होता ही है ...

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