Friday 31 January 2014

अंगुलियाँ

कभी  साथ मिलकर
इन अंगुलियों ने
उकेरे थे ढेरों 
कोमल, स्नेहमय,मधुर
और मृदु शब्द ,उन
प्रेम पातियों पर,
हो उल्लसित होकर
लिखी जाती थी
हर दिन हर लम्हा
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारे नाम !

 

आजकल  मुझसे
उन अंगुलियों की
खटपट सी है , वो अब    
लड़ती झगड़ती रहती हैं
हर वक़्त, हर लम्हा
एक दूसरे से ,और
रहती हैं फुदकती
मोबाइल और कम्प्युटर
के कुंजीपटलों पर,
लिखने को अस्पष्ट
और भाव-विहीन  
मुख्तसर से हर्फ़
तुम्हारे नाम !


-विक्रम

2 comments:

  1. waah bahut sundar ......samay bhale badal jaaye bhawnaayen nahi badalti ...

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  2. बढ़िया है जी , शब्द आपके स्पर्शी हैं !

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