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-फ़िराक़ गोरखपुरी।
मुख़ालफ़त से मेरी शख़्सियत संवरती है,
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतेराम करता हूँ ।
-बशीर बद्र
वो आये हैं पशेमां लाश पर अब,
तुझे अय ज़िंदगी लाऊं कहां से ।
--मोमिन
जब मैं चलूं तो साया भी अपना न साथ दे,
जब तुम चलो, ज़मीन चले, आस्मां चले ।
-जलील मानकपुरी
हम तुम मिले न थे तो जुदाई का था मलाल,
अब ये मलाल है कि तमन्ना निकल गयी ।
-जलील मानकपुरी
मुझको उस वैद्य की विद्या पे तरस आता है,
भूखे लोगों को जो सेहत की दवा देता है।
-‘नीरज’
बहुत कुछ पांव फैलाकर भी देखा ‘शाद’ दुनिया में,
मगर आख़िर जगह हमने न दो गज़ के सिवा पायी।
-‘शाद’ अज़ीमाबादी
मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं,
ज़िंदगी भी जान लेकर जाएगी।
-‘जोश’ मलसियानी
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुई,
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया।
-‘सफ़ी’ लखनवी
नींद भी मौत बन गयी है
बेवफ़ा रात भर नहीं आती।
-‘अदम’
इसी फरेब में सदियां गुजार दीं हमने,
गुजरे साल से शायद ये साल बेहतर हो।
-‘मेराज’ फैजाबादी
बड़ी मुद्दत से तनहा थे मेरे दुख
खुदाया, मेरे आँसू रो गया कौन
-परवीन शाकिर
मेरे मौन से जिसको गिले रहे क्या-क्या
बिछड़ते वक़्त उन आँखों का बोलना देखे
-परवीन शाकिर
बातों का भी ज़ख़्म बहुत गहरा होता है
क़त्ल भी करना हो तो बेख़ंज़र आ जाना
-सुरेश कुमार
हम उसे आंखों की देहरी नहीं चढ़ने देते
नींद आती न अगर ख्वाब तुम्हारे लेकर
-आलोक
तरतीब-ए-सितम का भी सलीका था उसे
पाहे पागल किया और फिर पत्थर मारे
खोला करो आँखों के दरीचों को संभल कर
इनसे भी कभी लोग उतर जाते हैं दिल में
"वहां से पानी कि एक बूँद भी न निकली
तमाम उम्र जिन आँखों को हम झील लिखते रहे"
"कोई पूंछता है मुझसे मेरी ज़िन्दगी कि कीमत
मुझे याद आता है तेरा हलके से मुस्कुराना"
"किस रावण की बाहें काटूँ,किस लंका में आग लगाऊं
घर घर रावण,घर घर लंका,इतने राम कहाँ से लाऊं"
बहुत मुश्किल से होता है तेरी "यादों" का कारोबार,
मुनाफा कम है लेकिन गुज़ारा हो ही जाता है...
मौजूद थी उदासी; अभी पिछली रात की,
बहला था दिल ज़रा सा, के फिर रात हो गयी।
तेरी हालत से लगता है तेरा अपना था कोई,
इतनी सादगी से बरबाद, कोई गैर नहीं करता।
अपने सिवा, बताओ, कभी कुछ मिला भी है तुम्हें,
हज़ार बार ली हैं, तुमने मेरे दिल की तलाशियाँ
उस के दिल में थोड़ी सी जगह मांगी थी मुसाफ़िरों की तरह,
उसने तन्हाइयों का इक शहर मेरे नाम कर दिया।
अब मौत से कहो, हम से नाराज़गी ख़तम कर ले,
वो बहुत बदल गए हैं, जिनके लिए जिया करते थे!!
कितना मुश्किल है ये जिंदगी का सफ़र भी,
खुदा ने मरना हराम किया, लोगों ने जीना हराम
सोचता हूँ के उसके दिल में उतर कर देखूँ,
कौन रहता है वहाँ, जो मुझे बसने नहीं देता|
किसी से जुदा होना इतना आसान होता फ़राज़
तो जिस्म से रूह को लेने फ़रिश्ते नहीं आते।।
-Unknown
तुम इसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठे,फराज़
उसकी आदत है निगाहों को झुकाकर मिलना
बात किस्मत की है फराज़ जुड़ा हो गए हम
वरना वो तो मुझे तक़दीर कहा करती थी
कुछ ऐसे हादसे भी जिंदगी मे होते हैं "फराज़"
की इंसान बच टी जाता है मगर जिंदा नहीं रहता
दुखो ने मेरे दमन को यूं थाम रखा है "फराज़"
जैसे उनका भी मेरे सिवा कोई अपना नहीं रहा"
उँगलियाँ आज भी इसी सोच मे गुम है "फराज़
उसने किस तरह नए हाथ को थामा होगा "
आँसू, आहें, तनहाई ,वीरानी और गम-ए-मुसलसल
एक जरा सा इश्क हुआ था क्या क्या विरासत मे दे गया
पूछा था हाल उसने बड़ी मुद्दत के बाद
कुछ गिर गया आँख मे ये कहके रो दिये
ढलने लगी थी रात... कि तुम याद आ गए,...
फिर उसके बाद रात बहुत देर तक रही....
किस कदर मुश्किल है मोहब्बत की कहानी लिखना....
जिस तरह पानी से......... पानी पे .....पानी लिखना...
"सियासत सूरतों पर इस तरह एहसान करती है
ये आंख्ने छीन लेती है, और चश्में दान करती है"
"मिलाना चाहा है जब भी इंसान को इंसान से
तो सारे काम सियासत बिगाड़ देती है"
- मेरे मनपसंद शेर :-
गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे
ज़मीं पे नक्श-ए-क़दम बस किसी किसी का रहा-फ़िराक़ गोरखपुरी।
मुख़ालफ़त से मेरी शख़्सियत संवरती है,
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतेराम करता हूँ ।
-बशीर बद्र
वो आये हैं पशेमां लाश पर अब,
तुझे अय ज़िंदगी लाऊं कहां से ।
--मोमिन
जब मैं चलूं तो साया भी अपना न साथ दे,
जब तुम चलो, ज़मीन चले, आस्मां चले ।
-जलील मानकपुरी
हम तुम मिले न थे तो जुदाई का था मलाल,
अब ये मलाल है कि तमन्ना निकल गयी ।
-जलील मानकपुरी
मुझको उस वैद्य की विद्या पे तरस आता है,
भूखे लोगों को जो सेहत की दवा देता है।
-‘नीरज’
बहुत कुछ पांव फैलाकर भी देखा ‘शाद’ दुनिया में,
मगर आख़िर जगह हमने न दो गज़ के सिवा पायी।
-‘शाद’ अज़ीमाबादी
मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं,
ज़िंदगी भी जान लेकर जाएगी।
-‘जोश’ मलसियानी
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुई,
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया।
-‘सफ़ी’ लखनवी
नींद भी मौत बन गयी है
बेवफ़ा रात भर नहीं आती।
-‘अदम’
इसी फरेब में सदियां गुजार दीं हमने,
गुजरे साल से शायद ये साल बेहतर हो।
-‘मेराज’ फैजाबादी
बड़ी मुद्दत से तनहा थे मेरे दुख
खुदाया, मेरे आँसू रो गया कौन
-परवीन शाकिर
मेरे मौन से जिसको गिले रहे क्या-क्या
बिछड़ते वक़्त उन आँखों का बोलना देखे
-परवीन शाकिर
बातों का भी ज़ख़्म बहुत गहरा होता है
क़त्ल भी करना हो तो बेख़ंज़र आ जाना
-सुरेश कुमार
हम उसे आंखों की देहरी नहीं चढ़ने देते
नींद आती न अगर ख्वाब तुम्हारे लेकर
-आलोक
तरतीब-ए-सितम का भी सलीका था उसे
पाहे पागल किया और फिर पत्थर मारे
खोला करो आँखों के दरीचों को संभल कर
इनसे भी कभी लोग उतर जाते हैं दिल में
"चुपके से भेजा था एक गुलाब उनको
खुशबू ने शहर भर में मगर तमाशा बना दिया"
तमाम उम्र जिन आँखों को हम झील लिखते रहे"
"उस शख्स को बिछड़ने का सलीका भी नहीं आता
जाते जाते खुद को मेरे पास छोड़ गया"
मुझे याद आता है तेरा हलके से मुस्कुराना"
"इन्सान की ख्वाहिशों की इन्तहा नहीं, .....
दो गज़ जमीन भी चाहिये दो गज़ कफ़न के बाद"
घर घर रावण,घर घर लंका,इतने राम कहाँ से लाऊं"
मुनाफा कम है लेकिन गुज़ारा हो ही जाता है...
मौजूद थी उदासी; अभी पिछली रात की,
बहला था दिल ज़रा सा, के फिर रात हो गयी।
तेरी हालत से लगता है तेरा अपना था कोई,
इतनी सादगी से बरबाद, कोई गैर नहीं करता।
अपने सिवा, बताओ, कभी कुछ मिला भी है तुम्हें,
हज़ार बार ली हैं, तुमने मेरे दिल की तलाशियाँ
उस के दिल में थोड़ी सी जगह मांगी थी मुसाफ़िरों की तरह,
उसने तन्हाइयों का इक शहर मेरे नाम कर दिया।
अब मौत से कहो, हम से नाराज़गी ख़तम कर ले,
वो बहुत बदल गए हैं, जिनके लिए जिया करते थे!!
कितना मुश्किल है ये जिंदगी का सफ़र भी,
खुदा ने मरना हराम किया, लोगों ने जीना हराम
सोचता हूँ के उसके दिल में उतर कर देखूँ,
कौन रहता है वहाँ, जो मुझे बसने नहीं देता|
किसी से जुदा होना इतना आसान होता फ़राज़
तो जिस्म से रूह को लेने फ़रिश्ते नहीं आते।।
-Unknown
तुम इसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठे,फराज़
उसकी आदत है निगाहों को झुकाकर मिलना
बात किस्मत की है फराज़ जुड़ा हो गए हम
वरना वो तो मुझे तक़दीर कहा करती थी
कुछ ऐसे हादसे भी जिंदगी मे होते हैं "फराज़"
की इंसान बच टी जाता है मगर जिंदा नहीं रहता
दुखो ने मेरे दमन को यूं थाम रखा है "फराज़"
जैसे उनका भी मेरे सिवा कोई अपना नहीं रहा"
उँगलियाँ आज भी इसी सोच मे गुम है "फराज़
उसने किस तरह नए हाथ को थामा होगा "
आँसू, आहें, तनहाई ,वीरानी और गम-ए-मुसलसल
एक जरा सा इश्क हुआ था क्या क्या विरासत मे दे गया
पूछा था हाल उसने बड़ी मुद्दत के बाद
कुछ गिर गया आँख मे ये कहके रो दिये
जाने कैसे जीते हैं लोग यादों के सहारे...
मैं तो कई बार मरता हूँ एक याद आने पे....
मैं तो कई बार मरता हूँ एक याद आने पे....
और इससे ज्यादा क्या नरमी बरतूं...
दिल के ज़ख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह....ढलने लगी थी रात... कि तुम याद आ गए,...
फिर उसके बाद रात बहुत देर तक रही....
तुम्हारे शहर मे मैयत को सब कन्धा नहीं देते....,
हमारे गाँव मे छप्पर भी सब मिलकर उठातेमौत तो मुफ्त में बदनाम हुई है....
जान तो कम्बखत ये ज़िन्दगी लिया करती हैकिस कदर मुश्किल है मोहब्बत की कहानी लिखना....
जिस तरह पानी से......... पानी पे .....पानी लिखना...
रोज़ रोते हुए कहती है ....ज़िन्दगी मुझसे फ़राज़...
सिर्फ एक शख्स की खातिर.... मुझे यूँ बर्बाद न कर.अभी मशरूफ हूँ काफी....कभी फुर्सत में सोचूंगा....
कि तुझ को याद रखने में....मैं क्या भूल जाता हूँ.....तुझ से अब कोई वास्ता नहीं है लेकिन.....
तेरे हिस्से का वक़्त आज भी तनहा गुज़रता है....अजीब कशमकश कि जान किसे दें "फ़राज़"
वो भी आ बैठे हैं.....और मौत भी,......अगर वो पूँछ लें हमसे.....तुम्हे किस बात का ग़म है......
तो किस बात का ग़म है.....गर वो पूँछ लें हमसे....किसी से जुदा होना गर इतना आसन होता.....
तो जिस्म से रूह को लेने फ़रिश्ते नहीं आते.....सुना था ज़िन्दगी इम्तेहान लिया करती है "फ़राज़"
यहाँ तो इम्तेहानो ने ज़िन्दगी ले रख्ही है.....अब तो दर्द सहने कि इतनी आदत हो गयी है"फ़राज़"
कि दर्द नहीं मिलता तो दर्द होता है....."सियासत सूरतों पर इस तरह एहसान करती है
ये आंख्ने छीन लेती है, और चश्में दान करती है"
कुछ रोज तक तो मुझको तेरा इंतजार था
फिर मेरी आरजूओं ने बिस्तर पकड़ लिया
फिर मेरी आरजूओं ने बिस्तर पकड़ लिया
फिर किसी ने लक्ष्मी देवी को ठोकर मार दी
आज कूड़ेदान मे फिर एक बच्ची मिल गई.....
आज कूड़ेदान मे फिर एक बच्ची मिल गई.....
जिसने भी इस खबर को सुना सिर पकड़ लिया
कल एक दिये ने आँधी का कालर पकड़ लिया
कल एक दिये ने आँधी का कालर पकड़ लिया
-मुन्नवर राणा
बस दुकान के खोलते ही झूठ सारे बिक गए
एक तन्हा सच लिए में शाम तक बैठा रहा .....
एक तन्हा सच लिए में शाम तक बैठा रहा .....
"परदेसी ने लिखा है जिसमें, लौट न पाऊँगा
विरहन को उस खत का अक्षर-अक्षर चुभता है "
विरहन को उस खत का अक्षर-अक्षर चुभता है "
"बेटी की अर्थी चुपचाप उठा तो ली
अंदर अंदर लेकिन बाप टूट गया"
अंदर अंदर लेकिन बाप टूट गया"
"स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं
पत्ते देहाती रहते हैं, फल शहरी हो जाते हैं"
पत्ते देहाती रहते हैं, फल शहरी हो जाते हैं"
"ग़रीबी क्यों हमारे शहर से बाहर नहीं जाती
अमीर-ए-शहर के घर की हर एक शादी बताती है"
अमीर-ए-शहर के घर की हर एक शादी बताती है"
कहाँ आसान है पहली मुहब्बत को भुला देना
बहुत मैंने लहू थूका है घरदारी बचाने में”
बहुत मैंने लहू थूका है घरदारी बचाने में”
ये अमीरे शहर के दरबार का कानून है
जिसने सजदा कर लिया तोहफे में कुर्सी मिल गई
जिसने सजदा कर लिया तोहफे में कुर्सी मिल गई
- मुन्नवर राणा
ये बात अलग है की खामोश खड़े रहते हैं
फिर भी जो लोग बड़े हैं वो बड़े रहते हैं....
फिर भी जो लोग बड़े हैं वो बड़े रहते हैं....
हमारे मुल्क में खादी की बरकते हैं मियां।
चुने चुनाए हुए हैं सारे छटे छटाये हुए...."
चुने चुनाए हुए हैं सारे छटे छटाये हुए...."
"उखड़े पड़ते है मेरी कब्र के पत्थर ,हरदिन
तुम जो आजाओ किस दिन तो मरम्मत हो जाए"
तुम जो आजाओ किस दिन तो मरम्मत हो जाए"
"मिलाना चाहा है जब भी इंसान को इंसान से
तो सारे काम सियासत बिगाड़ देती है"
- राहत इंदौरी
मैंने अब तक एक हाथों में इतने नगीने न देखे थे, की आँखों के बजाय धड़कनों को रौशन कर गया !
ReplyDeleteRajput jee ham aapke shabdo ke ahsason ke kaayal ho gaye, aur gujaarish hai ek baar mere blog par padharein ..http://www.raj-meribaatein.blogspot.com
मैंने अब तक एक हाथों में इतने नगीने न देखे थे, की आँखों के बजाय धड़कनों को रौशन कर गया !
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