मैं, उम्रभर
तुम्हारे उन अव्यक्त और अस्पष्टाक्षर शब्दों
के अर्थ तलाशने को ,
शब्द-मीमांसाओं के अंतर-जाल
भेदता रहा .....
कपोल-कल्पनाओं की
आड़ लेकर तलाशता रहा
कुछ समानार्थी शब्द !
शब्दों के उन झंझावातों ने
मतांध बना दिया मुझे ।
उल्लासोन्माद की पराकाष्ठाएं
लांघकर ,
जानना चाहता हूँ अभिप्राय,
तुम्हारे उन
अव्यक्त शब्दों का ....
"विक्रम"
गहन चिंतन
ReplyDeleteकुछ अव्यक्त शब्द कई बार समझ तो आते हैं ... पट इंसान समजना चाहता है उन्ही से जो बो गए हैं शब्द ... भावपूर्ण ...
ReplyDeleteसच कहा कई बार कुछ बातो के मायने तलाशने में जिन्दगी निकल जाती है ..सार्थक अभिव्यक्ति
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