Saturday 17 October 2015

भूला

घर की चौखट पे
दोनों हाथ टिकाये
वो आज भी उस गली के
दूसरे छोर तक नज़रों
को बिछाये बैठी है ,
जिस गली से गुजरकर
मुद्दतों पहले कोई
चला गया......

शामों को अक्सर
हल्के अंधरे में ,
गली से गुजरता हर
साया उसे
जाना-पहचाना सा
नज़र आता ,
मगर  पास आने पर....
उसकी नजरें फिर से
गली के आख़िरी छोर
पर लौट जाती ,फिर से
किसी भूले को घर
वापिस लाने  ......   

 "विक्रम"




3 comments:

  1. धारा प्रवाह लेखन - बहुत सुन्दर

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  2. वाह - मार्मिक प्रस्तुति

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