मायूसियां ओढ़कर
लेटी हैं,
उम्मीदों की राहें, ओर
विलुप्त होता वक़्त की
गहराइयों में
तेरा अहसास
दीर्घकालीन अंतराल के
बोझ से चरमराकर
बिखरने लगा है तिलस्म,
तेरे तसव्वुर का ।
वक़्त के हाथों खंडित
होने लगे है,
तेरी स्मृतियों के स्तम्भ,
बावजूद मेरी तिश्नगी
आज भी अक्षुण्ण है।
बतौर अमानत ,
मेरे हिस्से में दर्ज़ हैं
धुंधले आलिंगन,
अधूरी मुस्कराहटें और
अल्प अधूरी-सी मुलाकातें .........
“विक्रम”
लेटी हैं,
उम्मीदों की राहें, ओर
विलुप्त होता वक़्त की
गहराइयों में
तेरा अहसास
दीर्घकालीन अंतराल के
बोझ से चरमराकर
बिखरने लगा है तिलस्म,
तेरे तसव्वुर का ।
वक़्त के हाथों खंडित
होने लगे है,
तेरी स्मृतियों के स्तम्भ,
बावजूद मेरी तिश्नगी
आज भी अक्षुण्ण है।
बतौर अमानत ,
मेरे हिस्से में दर्ज़ हैं
धुंधले आलिंगन,
अधूरी मुस्कराहटें और
अल्प अधूरी-सी मुलाकातें .........
“विक्रम”
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .आभार . तेरे हर सितम से मुझको नए हौसले मिले हैं .''
ReplyDeleteसाथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
बहुत ही सुन्दर और सशक्त लेखनी | पढ़कर अच्छा लगा | सादर आभार |
ReplyDeleteआप भी कभी यहाँ पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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"बस एक बार चले आओ गरीब होने से बचाने"
ReplyDeleteसुंदर अभिवक्ती है दादा
प्रियतम की याद में बहुत ही मार्मिक पुकार, सूफ़ी फ़कीर परमात्मा की याद में इसी तरह की रचनाये गाते रहे हैं, बहुत सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही सुन्दर सार्थक भावपूर्ण रचना,आभार.
ReplyDeleteवक्त की बेरहमी चिन्ह मिटा सकती है ... तिश्नगी नहीं ....
ReplyDeleteयादें किसी न किसी बहाने आएँगी ..
भावमय रचना ...
बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDelete
ReplyDeleteप्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर