Sunday 26 May 2013

स्मृतियां

मायूसियां ओढ़कर 
लेटी हैं,
उम्मीदों की राहें, ओर
विलुप्त होता वक़्त की 
गहराइयों में 
तेरा अहसास 



दीर्घकालीन अंतराल  के
बोझ से चरमराकर 
बिखरने लगा है तिलस्म, 
तेरे तसव्वुर  का । 

वक़्त के हाथों खंडित   
होने लगे है, 
तेरी स्मृतियों के स्तम्भ,
बावजूद  मेरी तिश्नगी 
आज भी अक्षुण्ण है। 

बतौर अमानत ,
मेरे हिस्से में दर्ज़ हैं
धुंधले आलिंगन, 
अधूरी मुस्कराहटें और 
अल्प अधूरी-सी मुलाकातें .........  


“विक्रम”

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .आभार . तेरे हर सितम से मुझको नए हौसले मिले हैं .''
    साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN

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  2. बहुत ही सुन्दर और सशक्त लेखनी | पढ़कर अच्छा लगा | सादर आभार |

    आप भी कभी यहाँ पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  3. "बस एक बार चले आओ गरीब होने से बचाने"
    सुंदर अभिवक्ती है दादा

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  4. प्रियतम की याद में बहुत ही मार्मिक पुकार, सूफ़ी फ़कीर परमात्मा की याद में इसी तरह की रचनाये गाते रहे हैं, बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  5. बहुत ही सुन्दर सार्थक भावपूर्ण रचना,आभार.

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  6. वक्त की बेरहमी चिन्ह मिटा सकती है ... तिश्नगी नहीं ....
    यादें किसी न किसी बहाने आएँगी ..
    भावमय रचना ...

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  7. बहुत भावपूर्ण रचना...

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  8. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  9. प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति
    बहुत सुंदर


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