Tuesday 26 March 2013

मिट चुकी वो राहगुजर


धुंधला गए वो सभी निशां
मिट चुकी वो राहगुजर

बुढ़ा हो चला अब , वो 
किनारें का  पुराना मकान,
जो था कभी हमारी 
मुलाकातों का निगहबान ।

बिखर गए वो  दीवार-ओ-दर ... मिट चुकी वो राहगुजर...

उग आई उन राहों पे  
नीरस सी तनहाइयाँ
फैली हैं फिज़ाओं में
जुदाई की रुसवाईयां 

क्यों बिछड़ गए तुम हमसफर  ... मिट चुकी वो राहगुजर...

उग आए उस झील मे 
कुछ छोटे कुछ बड़े मकान ।
गोद मे ढलती थी जिसके   
अपनी सुबह अपनी शाम 

कहाँ गई वो सभी लहर  ... मिट चुकी वो राहगुजर...
 
बसी है बरसों बाद भी
तेरी महक फिज़ाओं मे

एक ख्याल गर्म सासों का
और कदम जाते हैं  बहक
 

फिर आता नहीं कुछ भी नज़र ... मिट चुकी वो राहगुजर...

 
- विक्रम


 
 
 
 
 
 

6 comments:

  1. वाह, लाजवाब रचना. होली पर याद आना स्वाभाविक है. होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. बहुत खूब ... बीती यादें, मकां ओर वो रस्ते महकते रहते हैं ...
    सताते हैं ... यादों में ले जाते हैं ..
    होली की बधाई ओर शुभकामनायें ...

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  3. राहगुज़र मिट जाए फिर भी यादें नहीं मिटती... बेहतरीन रचना... होली की बहुत-बहुत बधाई

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  4. वाह, लाजवाब रचना
    होली पर्व की रंगबिरंगी शुभकामनाएँ

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  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  6. ओ मेरे पिया
    रंग न दीया ;
    घबडाये जिया ...happy holi

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