धुंधला गए वो सभी निशां
मिट चुकी वो राहगुजर
बुढ़ा हो चला अब , वो
किनारें का पुराना मकान,
जो था कभी हमारी
मुलाकातों का निगहबान ।
बिखर गए वो दीवार-ओ-दर ... मिट चुकी वो राहगुजर...
उग आई उन राहों पे
नीरस सी तनहाइयाँ
फैली हैं फिज़ाओं में
जुदाई की रुसवाईयां
क्यों बिछड़ गए तुम हमसफर ... मिट चुकी वो राहगुजर...
उग आए उस झील मे
कुछ छोटे कुछ बड़े मकान ।
जो था कभी हमारी
मुलाकातों का निगहबान ।
बिखर गए वो दीवार-ओ-दर ... मिट चुकी वो राहगुजर...
उग आई उन राहों पे
नीरस सी तनहाइयाँ
फैली हैं फिज़ाओं में
जुदाई की रुसवाईयां
क्यों बिछड़ गए तुम हमसफर ... मिट चुकी वो राहगुजर...
उग आए उस झील मे
कुछ छोटे कुछ बड़े मकान ।
गोद मे ढलती थी जिसके
अपनी सुबह अपनी शाम
अपनी सुबह अपनी शाम
कहाँ गई वो सभी लहर ... मिट चुकी वो राहगुजर...
बसी है बरसों बाद भी
तेरी महक फिज़ाओं मे
एक ख्याल गर्म सासों का
और कदम जाते हैं बहक
तेरी महक फिज़ाओं मे
एक ख्याल गर्म सासों का
और कदम जाते हैं बहक
फिर आता नहीं कुछ भी नज़र ... मिट चुकी वो राहगुजर...
- विक्रम
वाह, लाजवाब रचना. होली पर याद आना स्वाभाविक है. होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब ... बीती यादें, मकां ओर वो रस्ते महकते रहते हैं ...
ReplyDeleteसताते हैं ... यादों में ले जाते हैं ..
होली की बधाई ओर शुभकामनायें ...
राहगुज़र मिट जाए फिर भी यादें नहीं मिटती... बेहतरीन रचना... होली की बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteवाह, लाजवाब रचना
ReplyDeleteहोली पर्व की रंगबिरंगी शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...होली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteओ मेरे पिया
ReplyDeleteरंग न दीया ;
घबडाये जिया ...happy holi