Monday 15 October 2012

फर्क


कॉलेज छूटने के बाद  निहारिका अपने सहपाठी विकाश के जिद्द करने पर उसके साथ  पार्क मे घूमने चली गई। दोनों ने वहीं पे खाना खाया और बातों ही बातों मे कब सांझ हो गई पता ही नहीं चला।

“हमे अब चलना चाहिए विकाश “, निहारिका ने कहा।

“हाँ , चलो “, कहकर दोनों बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ गए।

घर पहुँचकर निहारिका तुरंत अपने कमरे मे गई तो पीछे पीछे  उसकी मम्मी  भी पैर पटकती हुई पहुँच गई । निहारिका को इसका पूर्वानुमान पहले से था।

“कॉलेज से आ रही हो या नौकरी से ? शाम के छ:  बज चुके है। कुछ तो ख्याल करो। “

“आज थोड़ी देर हो गई मम्मी , ....वो विकाश जिद्द करने लगा तो हम  साथ मे पार्क चले गए  फिर खाना खाने और घूमने मे वक़्त का पता ही नहीं चला” , निहारिका ने सांस छोड़कर कुर्सी पर बैठते हुये कहा 

“लड़की जात का इतनी देर तक घर से बाहर रहना और किसी पराए मर्द के साथ घूमना अच्छी बात नहीं है, किसी ने देख लिया तो लोग तरह  तरह की बातें बनाएँगे। ऊपर से मौहल्ले वालों को बैठे बिठाये  इज्जत उछालने  का मौका मिल जाएगा। “ मम्मी  उसके पास आकर फुसफुसाते हुये कहने लगी।

“लेकिन मम्मी ऐसा वैसा कुछ नहीं है, में और विकाश सिर्फ दोस्त है। और फिर उस दिन में आपके साथ बाजार गई थी तो आपने देखा की  राहुल भैया भी उस दिन एक लड़की के साथ बाजार मे घूम रहे थे”

“उसका क्या है , वो तो लड़का है “,  मम्मी उसके कंधे को हाथ से धकेलते हुये रसोई मे चली गई ।


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