आज हम ज्यादातर उन बातों के बारें में सोचते हैं जो हमारे हाथ में ही नहीं है , मगर बवजूद इसके हम अपनी एनर्जी बेकार की बातों में जाया करते हैं जैसे ,अन्ना ने अनशन क्यों तोड़ दिया ? दिग्गी इतना क्यों बोलता है ? बारिश होगी या नहीं ?, इंडिया मैच जीतेगी या नहीं ? , सचिन १०० बना पायेगा या नहीं ? सरकार, महंगाई, अन्दौलन, हिंसां, मौसम आदि . इसको कहते हैं "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न ".
एक होता है "सर्कल ऑफ़ इन्फ्लूअन्स (Circle of Influence) " और एक होता है "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न (Circle of Concern) ". दिए गए चित्र में आंतरिक घेरा "सर्कल ऑफ़ इन्फ्लूअन्स" और बाहरी घेरा "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न" कहलाता है . हर इंसान इन दो चक्रों में जीवनभर घिरा रहता है .
"सर्कल ऑफ़ इन्फ्लूअन्स" आपका कार्यक्षेत्र है जिसमे आपका पूरा प्रभाव रहता है , जिसपे आपका नियत्रण है और आप जो चाहे उसमे कर सकते हैं . खुशियाँ, परिवार, बच्चे, आमोद-प्रमोद सब इस अन्दर वाले मगर छोटे से चक्र में हैं जो बाहरी चक्र के दवाब में लगातार छोटा होता जा रहा है . इसमे किये गए कार्यों से आपको आत्मसंतुष्टि मिलती है . इसके विपरीत "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न " वो घेरा है जिसके बारे में आप सोच सोच कर परेशान रहते हैं और जो आपके कार्यक्षेत्र से बाहर है .और इससे सम्बंधित मुद्दे आपके "सर्कल ऑफ़ इन्फ्लूअन्स" के चक्र को छोटा और "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न " को बड़ा कर देते हैं और नतीजन आप और चिंतित रहने लगते हैं .
इसलिए बेहतर है आप अपने आंतरिक चक्र को बड़ा आकार दें जिस से आपके "सर्कल ऑफ़ कन्सर्न ". कम हो जायेंगे जिससे आप और बेहतर ढंग से जीवन-निर्वाह कर सकेंगे .
"कुछ तो लोग कहेगें, लोगो का काम कहना, छोडो बेकार की बातों को, कहीं बीत न जाए रैना,....... "
-"विक्रम" 11th Aug'12
अच्छी और उपयोगी जानकारी के लिए आभार।
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ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने सर्कल ऑफ़ इन्फ्लुएंस
को बढाने की कोशिश होती रहनी चाहिए !
आभार !
कंसर्न को जितना भी बड़ा कर लें पर अंततः आतंरिक चक्र में लौटना पड़ता है तब खुद से पहचान होती है . बढ़िया कहा है..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए दिल से आभार..
ReplyDeleteआपने काफी दिलचस्प जानकारी दी... वाकई बेहतरीन भाई साहब...
बहुत अच्छा चिंतन ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया उपयोगी परामर्श ..
आभार
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.
मेरे ब्लॉग " meri kavitayen "की नवीनतम पोस्ट पर आपका स्वागत है .
आप का कहना ठीक है लेकिन आज के समय में हर आम आदमी चाहे तो कुछ कर सकता है जैसे मुम्बई की घटना के बाद सरकार उन लोगो को नहीं पकड़ रही थी, लेकिन फेशबुक पर लोगो के पोस्टो के दबाव में सरकार को उन लोगो पर करवाई करनी पड़ी और राज ठाकरे को रैली निकालनी पड़ी.
ReplyDeleteआप ने जो मेरे ब्लॉग पर सुझाव दिया था उस के लिये धन्यवाद,