Sunday 8 July 2012

-- मेरा जीवन --




गृहस्थ  के झंझटों से 
कुछ वक़्त निकालकर 
में अक्सर ...

चुपके से 
तुम्हारी यादों को 
छु  आता हूँ...

मेरा जीवन 
नदी के 
उन  दो किनारों 
के दरमियाँ बहते 
पानी सा है  ...

जो दोनों की छुवन 
से  सामंजस्य  बैठा 
लेता है , जीवन को
जीने का  ....

सच है की 

नदी के किनारे 

नही मिलते,मगर  

दिल तो  नादाँ है , 

  समझाए कौन ?...

"विक्रम"

1 comment:

  1. समझाने पर भी नासमझ सा दिल..सुन्दर रचना..

    ReplyDelete

शादी-विवाह और मैरिज ।

आज से पचास-पचपन साल पहले शादी-ब्याह की परम्परा कुछ अनूठी हुआ करती थी । बच्चे-बच्चियाँ साथ-साथ खेलते-कूदते कब शादी लायक हो जाते थे , कुछ पता ...