दिल मे कुछ भाव उमड़े और जब कौतूहल बढ़ा तो ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया । ये सिलसिला अभी तक तो बद्दस्तूर जारी है। जब भी कुछ नया या पुराना कोई किस्सा दिल मे हलचल पैदा कर बैचेनी बढाने लगता है तो उसे लिखकर कुछ शुकुन हासिल होता है। मगर कभी खुद ही यादों की राख़ टटोलकर चिंगारी खोंजने की नाकाम कोशिश करता हूँ। बस यही फलसफा है ।
Wednesday, 21 June 2017
Saturday, 17 June 2017
घर
भागते-दौड़ते....
अल सुबह भोर में ही,
लोगों के झुंड के झुंड ,
निकल पड़ते हैं सड़कों पे ,
और शाम के धुंधलके
से लेकर, देर रात तक,
लौटते रहते हैं उन घरों में,
जिनको,
बनाना तो आसान था
मगर ,
चलाना दुष्कर है.....
"विक्रम"
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